प्रथम विश्व युद्ध नोट्स

प्रथम विश्व युद्ध के आरंभ होने के कारण .-

गुप्त सन्धिया- 

first world war pratham vishv yuddh notes

यद्यपि जर्मनी रूस और ऑस्ट्रिया में परस्पर संधि हो चुकी थी किंतु जर्मनी को उस पर किन्हीं कारणों से विश्वास नहीं हो सकता था उसने 1879 में  ऑस्ट्रीया से एक गुप्त संधि कर ली थी 1882 में इटली ने भी जर्मनी व आस्ट्रिया से संधि कर ली और इस प्रकार 3 राष्ट्रीय गुट का जन्म हुआ ।बिस्मार्क ने अपनी कूटनीति से रूस और फ्रांस में वैमनस्य बनाए रखा किंतु 1890 में उसके पतन के साथ रूस और फ्रांस एक दूसरे के निकट आ गए और 1894 में उनका समझौता हो गया इसी समय इंग्लैंड भी अपने एकांतवास की नीति का त्याग कर जर्मनी का अनुसरण करने लगा उसने भी अन्य राज्य से समझौता करके अपनी शक्ति को सुदृढ़ करने का प्रयत्न किया ।जब उसका जर्मनी से समझौता आसान ना रह गया तो उसने 1902में जापान से 1904 मे फ्रांस से और 1907 में रूस से सन्धि कर ली और इस प्रकार त्रिराष्ट्रीय मैत्री संघ का निर्माण हो गया इन गुटबंदियों के फल स्वरूप यूरोप का दो गुटों में विभाजन हो गया जो एक दूसरे के घोर शत्रु थे इन दोनों गुटों के कारण प्रथम महायुद्ध आवश्यक हो गया प्रोफेसर फे का कथन है कि युद्ध का सबसे महत्वपूर्ण कारण गुप्त सन्धियों की प्रणाली थी जिसका विकास फ्रांस और प्रशा के युद्ध के बाद हुआ था इसने धीरे धीरे यूरोप की शक्तियों को ऐसे दो विरोधी गुटों में बांट दिया जिनमें एक दूसरे के प्रति संदेश बढ़ता रहा और जो अपनी सेना और नौसेना की शक्ति बढ़ाते रहे । first world war pratham vishv yuddh notes

(2)उपनिवेशवाद :-

यूरोप का प्रत्येक देश विदेशों में अपने उपनिवेश स्थापित करना चाहता था जिससे अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता का आविर्भाव हुआ जर्मनी और इंग्लैंड में यह प्रतिद्वंद्विताअपनी चरम सीमा पर पहुंच गई वे विश्व के प्रत्येक कौनो में बाजारों की स्थापना के लिए प्रयत्नशील थे वे एक-दूसरे की विरोधी बनते जा रहे थे वे अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या को बचाने के लिए अपनी उपनिवेशों की खोज में  थे। यूरोप में औद्योगिक क्रांति का प्रारंभ हो चुका था सभी देशों में उद्योगों का विकास हो रहा था तेयार माल की खपत के लिए भी अपनी उपनिवेश की आवश्यकता थी इंग्लैंड और जर्मनी उपनिवेश की प्राप्ति के लिए अत्यधिक संघर्ष कर रहे थे इस दिशा में फ्रांस इटली रूस आदि देश भी प्रयत्नशील थे। उपनिवेश के प्रश्नों को लेकर विरोधी गुटों के बीच संघर्ष की स्थिति हो गई । 

(3)सैनिकवाद

सन 1871 से 1914 का काल यूरोप में घोर सैनिक वाद की विकास का काल था अतः यह  काल इतिहास में सशस्त्र क्रांति का युग कहा जाता है इस समय दोनों गुटों में अपनी सेना और नौसेना बढ़ाने की दौड़ हो रही थी प्रत्येक राष्ट्र अपने देश में युद्ध की अनिवार्यता व लाभों का प्रचार कर रहा था जर्मनी की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर इंग्लैंड ने यह निश्चय कर लिया था कि यदि जर्मनी एक जहाज बनाता है तो वह 6 बनाएगा। विलियम द्वितीय ने घोषित किया था कि जर्मनी का भविष्य समुद्र पर निर्भर करता है उसने अपनी सेना के सम्मुख अनेक बार उत्तेजना का भाषण दिए इससे अन्य देशों में बहुत चिंता उत्पन्न हो गई 1904 के बाद नौसेना के निर्माण की प्रतिद्वंद्विता के कारण ही इंग्लैंड तथा जर्मनी के बीच कटुता बढ़ने लगी जर्मनी के पास 8,50000 सैनिक थे रूस के पास भी शांति काल में 15,00000 सैनिक थे उन देशों ने भी सैनिक संगठन पर जोर देना आरंभ कर दिया प्रदेश देश में संगठित वर्ग का विकास हो गया ।प्रत्येक देश में नौसेना का प्रभाव बढ़ गया इस प्रकार से सैनिकवाद की वह दौड़ पर्याप्त सिमा तक प्रथम महायुद्ध ले लिए अनिवार्य बन चुकी थी। first world war pratham vishv yuddh notes

(4)प्रेस व पत्रिकाओं का विकास



(5) जनमत की अवहेलना

जनता में असंतोष व्याप्त हो रहा था यूरोपके राज्यों में अधिकारी वर्ग ही शासन कार्यों को करता था यही नहीं व्यवस्थापक विभाग के अनेक कार्यो के बारे में जनता को कोई जानकारी ही नहीं रख पाती थी मंत्रिमंडल को बिना बनाए हुए गुप्त सन्धिया कर ली जाती थी जनवरी 1906 इंग्लैंड के सर एडवर्ड ग्रे ने फ्रांस  के साथ बातचीत की जो किपूर्णता गुप्त रही जिसका पता संसद को भी 1912 तक न लग सका ।सम्राट व विदेश मंत्री ही सन्धिया कर लिया करते थे ।इसलिए जनता अपनी सरकार के प्रति विश्वास नहीं रखती थी जनता की इच्छा कभी युद्ध करने की नहीं होती थी वह शांति चाहती थी लेकिन सम्राटों को साम्राज्य व रक्त की पिपासा होती है ।जनमत के विचारों के विरोध से भी युद्ध की आशंका  समाप्त ना हो सकी इस कारण युद्ध होना अनिवार्य हो गया था । first world war pratham vishv yuddh notes

(6)कूटनीतिक कारण

कूटनीति के दाव पेचो ने भी अंतरराष्ट्रीय तनाव को बढ़ावा दिया था बिस्मार्क ने जर्मनी में त्रिगुट की स्थापना की इसके प्रत्युत्तर स्वरूप त्रिराष्ट्र मैत्री संघ का जन्म हुआ और उनमें परस्पर कभी बाल्कन प्रायद्वीप के प्रश्न को लेकर तथा कभी मोरक्को की समस्या को लेकर तनाव बढ़ता है यद्यपि कूटनीति प्रत्यक्ष रूप से युद्ध का कारण ना बन सकी फिर भी युद्ध की परिस्थितियों को जन्म देने में उसका महत्वपूर्ण स्थान रहा उसने यूरोप के समस्त देशों को सन्धियों की एक ऐसे जाल में बांध कर रखा था कि एक युद्ध करता तो दूसरे को स्वतः ही उसमें शामिल हो जाना पड़ता था गुटबंदियों से पूर्व बड़े-बड़े राष्ट्र सम्मेलनों के द्वारा प्रारंभिक झगड़ों को निपटा लेते थे किंतु अपनी ही प्रतिष्ठा को सर्वोपरी समझने वाले तथा औचित्य की भावना से ही गुटों के निर्माण ने इस कार्य को असंभव बना दिया । first world war pratham vishv yuddh notes

(7) फ्रांस की प्रतिशोध की भावना :-

जर्मनी ने 1871 ईसवी में फ्रांस के अलसेस व लॉरेन प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था। उस समय एक बड़ी हर्जाने की रकम को ना देने की अवधि तक अपने व्यय पर जर्मन सेना रखने की शर्त लादी गई थी ।नेपोलियन महान के राष्ट्र का अपमान किया गया था फ्रांस को टुकड़ों में विभाजित कर दिया था ।अलसेस वह लोरेन उसके दो बच्चों के समान थे जो माता की गोद में जाने के लिए तड़प रहे थे और माता उनको वक्ष स्थल से चिपटा ने को तरस रही थी। फ्रांस किसी भी प्रकार अपने अपमान का जर्मनी से प्रतिशोध लेना चाहता था लेकिन जर्मनी उसे अब तक कुचल रहा था लेकिन फ्रांस भी किसी अच्छे अवसर की खोज में था मोरकको में भी जर्मनी ने फ्रांस का विरोध किया था अता फ्रांस में भी राष्ट्रीय भावनाओं को जागृत करने के विभिन्न उपाय किए जाने लगे इस सब का प्रथम कारण फ्रांस का एकाकी होना था फ्रांस ने भी मित्रों की खोज करनी शुरू कर दि।और उसे शीघ्र ही रूस और इंग्लैंड मित्र के रूप में मिल गए जर्मनी की कूटनीति में फ्रांस के स्वाभीयोग को जगा दिया । first world war pratham vishv yuddh notes

(8) राष्ट्रीयता की भावना :-

यूरोपीय देश और विशेषकर फ्रांस में समय-समय पर हुई क्रांति के फलस्वरूप देशों में राष्ट्रीयता की भावना का संचार होने लगा इन सब देशों में राष्ट्रीय और लोकसत्ता वाद की भावनाएं स्पष्ट रूप से प्रकट होने लगी ।यूरोप में नवीन और प्राचीन प्रवृतियां तथा विचारधाराओं में संघर्ष आरंभ हो गया रूस जर्मनी और ऑस्ट्रेया आदि में तो वर्तमान शताब्दी के आरंभिक वर्षों तक राजतन्त्रीय शासन व्यवस्था स्थापित थी इन सभी देशों में अनेक जातियों का निवास था और यह सभी जातियां अपनी राष्ट्रीयता के लिए निरंतर संघर्ष करती थी इतिहासकार सत्यकेतु विद्यालंकार के कथन है 1914 से 18 का महायुद्ध नवीन और प्राचीन प्रवृत्तियों के संघर्ष का ही परिणाम था उसके कारण नहीं प्रवृत्तियों की पुराने जमाने पर भारी विजय हुई ।यही कारण है कि इस बार युद्ध के बाद जर्मनी और ऑस्ट्रेया आदि राज्यों के वंशकर्मानुगत राजाओं के शासन का अंत हो गया और इन सब में लोकतंत्र और गणतंत्र  राज्यों की स्थापना हो गई  । first world war pratham vishv yuddh notes

(9)आर्थिक साम्राज्यवाद

प्रथम विश्व युद्ध का एक अन्य मुख्य कारण आर्थिक साम्राज्यवाद था औद्योगिक क्रांति के परिणाम स्वरुप देशों के उत्पादन में वृद्धि होने लगी परिणाम स्वरूप इन देशों से कच्चा माल लाने और अपनी  निर्मित माल को बेचने के लिए बाजारों की आवश्यकता अनुभव होने लगी ।ऐसा तभी हो सकता था जबकि उन देशों पर उनका एकाधिकार हो जाए इसके अतिरिक्त इन देशों पर किसी ना किसी प्रकार का राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित हुआ जिसके कारण सभी उन्नत राष्ट्र अपने लिए सुरक्षित राज्यो की व्यवस्था करने लगे और इस प्रकार साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का उदय हुआ इस प्रकार जब विभिन्न राष्ट्रों ने विश्व की खोज करनी आरंभ कर दी तो उनमें आपस में संघर्ष होना स्वभाविक था यही कारण है कि आर्थिक हितों से टकराने से युद्ध की संभावनाओं में और भी वृद्धि हो गई । first world war pratham vishv yuddh notes

(10)अंतरराष्ट्रीय संगठन का अभाव

स्पष्ट है  यूरोपीय राष्ट्र युद्ध के लिए तैयार थे इन परिस्थितियों व वातावरण में उनको कोई युद्ध से रोका सकता था और वह केवल एक ऐसी संस्था हो सकते थी जो युद्ध करने वाले देशों के मध्यस्थता करके उनके झगड़ो का शांतिपूर्वक निपटारा कर सकती ।इस प्रकार राष्ट्रों ने अनुभव करना आरंभ कर दिया था कि अंतरराष्ट्रीय संगठन की स्थापना की जाए जो निष्पक्ष रुप से उनकी झगड़ों को समाप्त करा दे इसी उद्देश्य से रूस के जार ने हेग में 1898 में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जनता को इससे बड़ी बड़ी आशाएं थी परंतु किन्ही विशेष कारणों से यह सम्मेलन असफल रहा । 1907 में एक अन्य सम्मेलन का आयोजन किया गया और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का निर्माण किया गया परंतु उन्हें लागू करने का पर्यटन नहीं किया गया। अंतरराष्ट्रीय संस्था के अभाव में किसी भी देश पर कोई अंकुश नहीं था और सभी देश अपनी इच्छा अनुसार उचित या अनुचित कार्य करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र थे । first world war pratham vishv yuddh notes

(11) विलियम द्वितीय की अयोग्यता

जर्मनी का सम्राट विलियम द्वितीय एक अयोग्य शासक था वह किसी देश से अंतरराष्ट्रीय संबंध स्थापित करने को तैयार ही नहीं था अपनी महत्वाकांक्षा से वह सदा गर्व से अंधा रहता था वह जर्मनी को विश्व का सबसे शक्तिशाली देश बनाने के लिए प्रयत्नशील था। उसने सामुद्रिक शक्ति का विकास इंग्लैंड से भी बढ़कर करना चाहा इंग्लैंड अपनी नाविक शक्ति को सर्वश्रेष्ठ रखना चाहता था फिर भी उसने जर्मनी से संधि करने का प्रस्ताव किया लेकिन अपनी अयोग्यता और और दूरदर्शिता से अनु प्राणित होकर उसने इंग्लैंड को असंतोष प्रद उत्तर दिया ।और ऑस्ट्रीया के पक्ष में अपनी संपत्ति प्रकट की। विलियम द्वितीय चाहता था कि इंग्लैंड बिना किसी शर्त के उनकी मांगों को स्वीकार कर ले।और वह इंग्लैंड की शक्ति को समझ नहीं सका यदि वह उसके साथ संधि कर लेता तो घटनाओं में परिवर्तन होता लेकिन वह अपने गर्व और अभिमान में चूर था उसकी और अदूरदर्शिता पूर्व नीति के कारण प्रथम महायुद्ध का जन्म हुआ । first world war pratham vishv yuddh notes

(12) पूर्वी समस्या

बाल्कन प्रायद्वीप की समस्या भी इस युद्ध का एक उल्लेखनीय कारण थी तुर्की की शासकीय त्रुटियों ने इस क्षेत्र के निवासियों को असंतुष्ट कर दिया था। ग्रीस सर्बिया बुल्गारिया भी मेसीडोनिया  के अधिकार के प्रश्न पर एकमत नहीं थे रूस पूर्व की ओर ऊंची रखता था वह बाल्कन की समस्या में हस्तक्षेप करना चाहता था ।उसने 1908 में बोस्निया की समस्या में सर्बिया को ग्रहण किया अतः अन्य राष्ट्रों पर परस्पर तनाव उत्पन्न हो गया था जो कि महायुद्ध का कारण बन गया । first world war pratham vishv yuddh notes



(13) इटली की आकांक्षाएं 

इटली ऑस्ट्रिया हंगरी के अधिकृत बंदरगाह के समीपवर्ती क्षेत्रों पर अधिकार करने का इच्छुक था क्योंकि इस क्षेत्र में इटालियन निवास करते थे इटली की जनता भी इन प्रदेशों को अपने देश में शामिल करना चाहती थी वे अपने देशवासियों से संपर्क स्थापित करने की अत्यधिक इच्छुक थे इटली की जनता ने इसके लिए आंदोलन का प्रारंभ कर दिया इस प्रकार यूरोप में युद्ध के बादल सघन  होते गए । first world war pratham vishv yuddh notes

(14)जर्मनी द्वारा परिशियन नीति का अनुसरण

पर्शियन नीति के अनुसार अध्यात्मिक विकास की अपेक्षा युद्ध में प्राप्त विजय का अत्यधिक महत्व था ।उनकी दृष्टि में विजेता कभी भूल नहीं करता वह इसे वहां के निवासियों की देशों उन्नति का साधन समझते हैं। उनका विश्वास था कि युद्ध का परिणाम सर्वश्रेष्ठ होता है जर्मनी का कथन था कि रक्त रंजित विजय के उपरांत विश्व को जर्मनी के सिद्धांत से ही सुख और शांति मिलेगी वे अपनी संस्कृति को ही विश्व के हितार्थ समझते थे ।वह अपनी संस्कृति का विस्तार समस्त यूरोप में करना चाहते थे उनकी इन्हीं कारणों ने उन्हें यूरोप के अनेक देशों इंग्लैंड फ्रांस आदि से मिलने नहीं दिया। अतः युद्ध होना अवश्यंभावी हो गया । first world war pratham vishv yuddh notes

(15) बोस्निया और हरजेगोविंना की समस्या

1878 की बर्लिन संधि के अनुसार बोस्निया और हर्जेगोविना का शासन प्रबंध ऑस्ट्रेया और हंगरी को प्राप्त हो गया किंतु संधि के अनुसार वह उनको अपने साम्राज्य में नहीं मिला सकते थे आस्ट्रिया तथा हंगरी ने इस प्रबंधों की अवहेलना की और 1908 में इन प्रांतों को अपने साम्राज्य में मिला लिया ।सर्बिया इन प्रदेशों पर अधिकार रखना चाहता था अतः उसने आंदोलन छेड़ दिया बोस्निया और हरजेगोविंना अब स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए इच्छुक थे उन्होंने सरबिया से सहायता की मांग की इसके परिणाम स्वरूप बाल्कन युद्ध का जन्म हुआ और इसी समस्या के कारण 1914 में प्रथम महायुद्ध का विस्फोट हो गया । first world war pratham vishv yuddh notes

(16) अंतर्राष्ट्रीय संकट

1905 से लेकर 1914 तक निम्नलिखित अंतरराष्ट्रीय संकट उत्पन्न हुए जिन्होंने यूरोप के वातावरण को तनावपूर्ण बना दिया –

(1)रूस जापान युद्ध :-

1904 से पांच में जापान तथा रूस के बीच युद्ध हुआ इसमें और रूस की पराजय हुई इस पराजय के कारण रूस को सुदूर पूर्व में विस्तार करने का अवसर नहीं मिला तो उसने बाल्कन क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया। जिससे बाल्कन क्षेत्र की स्थिति विस्फोटक हो गई इस पराजय के बाद रूस इंग्लैंड से संधि  करने के लिए बाध्य हुआ जिससे गटबंदी को प्रोत्साहन मिला।

(2) मोरक्को संकट :-

मोरकको में फ्रांस के बढ़ते हुए प्रभाव से जर्मनी नाराज था 1905 में जर्मन सम्राट विलियम द्वितीय  ने टेजियर पहुंचकर मोरक्को की स्वतंत्रता की घोषणा की उसने फ्रांस को अपमानित करने के लिए दो मांगे प्रस्तुत की  । first world war pratham vishv yuddh notes

(1) मोरकको की समस्या पर विचार करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जाए । 

(2) फ्रांस की विदेश मंत्री देलकसे को उसके पद से हटाया जाए फ्रांस को बाध्य होकर यह दोनों बातें स्वीकार करनी पड़ी। परंतु जब 1906 में अल्जेसिराज सम्मेलन आयोजन किया गया उसमें फ्रांस के हितों को मान लिया गया ।यह जर्मनी की कूटनीतिक पराजय थी इस अवसर पर इंग्लैंड ने फ्रांस का साथ दिया ।

1911 में जर्मनी ने अपना पेंथर नामक युद्धपोत बंदरगाह अगादि भेज दिया जिससे फ्रांस और जर्मनी के बीच युद्ध की स्थिति उत्पन्न होगी । परंतु इंग्लैंड की चेतावनी के कारण फ्रांस के साथ समझौता करना पड़ा यद्यपि अगादिर संकट टल गया परंत इसके फलस्वरूप जर्मनी और फ्रांस  दोनों देश युद्ध की तैयारी करने लगे । first world war pratham vishv yuddh notes

(3)बोस्निया संकट

आस्ट्रीयस बोस्निया कथा हरजेगोविंना को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। इससे सर्बिया को प्रबल आघात पहुंचा इन दोनों देशों में सर्बिया लोगों की आबादी अधिक थी। रूस ने सरबिया का पक्ष लिया तथा ऑस्ट्रिया को युद्ध की धमकी दी परंतु जर्मनी ने अपनी मित्र आस्ट्रिया का पक्ष लेते हुए रूस को चेतावनी दी कि आस्ट्रिया पर किया गया आक्रमण जर्मनी पर आक्रमण माना जाएगा। जर्मनी  की चेतावनी के कारण रूस को चुप बैठना पड़ा परंतु इस घटना से रूस तथा आस्ट्रिया के बीच शत्रुता बढ़ गई । first world war pratham vishv yuddh notes

(4) बाल्कन युद्ध

तुर्की की दुर्बलता का लाभ उठाकर 1911 में इटली ने त्रिपोली पर आक्रमण किया था । तथा तुर्की को बाध्य कर त्रिपोली पर इटली का अधिकार स्वीकार करना पड़ा। जिनसे बाल्कन राज्यो को तुर्की की दुर्बलता का पता चल गया 1912 में यूनान सर्बिया बुल्गारिया तथा मोंटेनीग्रो ने एक संघ बनाया जिसे बाल्कन संघ कहते हैं अक्टूबर 1912 में बाल्कन संघ ने तुर्की के विरोध युद्ध की घोषणा कर दी। इस प्रकार प्रथम बाल्कन युद्ध शुरू हो गया जिसमें तुर्की की पराजय हुई परंतु युद्ध के बाद हुई लंदन की संधि से बाल्कन राज्य असंतुष्ट थे 1913 में दूसरा बाल्कन युद्ध छिड़ गया जिसमें  बुल्गारिया की पराजय हुई उन्होंने यूरोप का वातावरण अशांति तथा विस्फोटक बना दिया। ग्रांट तथा टेंपरल का कथन है कि 1914 के युद्ध के लिए कोई घटना इतनी उत्तरदाई नहीं थी जितना की बाल्कन युद्ध । first world war pratham vishv yuddh notes

(17) तत्कालीन कारण :-

ऑस्ट्रिया हंगरी और सर्बिया में तनाव तो बोस्निया और हरजीगोविंना की समस्या के कारण ही था लेकिन इसी बीच 28 जून 1914 को ऑस्ट्रिया के राजकुमार ड्यूक फर्डिलैंड की बोस्निया के में कुछ क्रांतिकारियों के द्वारा हत्या कर दी गई इस पर आस्ट्रीया ने जो सर्बिया पर आक्रमण करने के लिए किसी अवसर की ताक में था इस हत्या का सारा दोष उसी पर लगा दिया और जर्मनी से सहायता का आश्वासन पाकर ऑस्ट्रेया ने सर्बिया को युद्ध की चुनौती दे दी ।इधर सरबिया को रूस से सहायता का आश्वासन मिल गया अतः उसने ऑस्ट्रिया की अनेक शर्तोको ठुकरा दिया 28 जुलाई 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया ।के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी । first world war pratham vishv yuddh notes

रूसने सर्बिया का पक्ष लेते हुए अपनी सेना की घोषणा कर दी दूसरी और जर्मनी ने आस्ट्रिया का पक्ष लेते हुए 1 अगस्त 1914 को उसके विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी 3 अगस्त 1914 को जर्मनी ने फ्रांस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी । 4 अगस्त 1914 को इंग्लैंड ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी ।इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध का दृश्य देखना पड़ा । first world war pratham vishv yuddh notes

प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम :-

प्रथम विश्व युद्ध के परिणामों का विश्लेषण विवेचन की सुविधा की दृष्टि स  के अंतर्गत किया गया है

(1) राजनीतिक परिणाम :-

प्रथम विश्वयुद्ध के राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव पड़े इसके कुछ प्रमुख परिणामों का विवेचन निबंध प्रकार है

  • 1.प्रांतीय सरकारों का पतन
  • 2.जनतंत्र भावना का विकास
  • 3.राष्ट्रीयता की भावना का
  • 4.विकास अंतरराष्ट्रीयता  भावना का विकास 
  • 5.अधिनायकवाद का उदय
  • 6.अमेरिका का उत्कर्ष 
  • 7.जापान का उत्कर्ष 




(2)आर्थिक परिणाम

प्रथम विश्व युद्ध में विश्व को महान आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा इस युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से लगभग 10 खरब रुपए तथा अप्रत्यक्ष रूप से व्यय की गई धनराशि का अनुमान लगाना कठिन है अर्थशास्त्रियों का मत है कि 1915 में अकेले इंग्लैंड का युद्ध का व्यय 15 लाख पाउंड प्रति दिन था जो 1917 -18 में बढ़कर 65 लाख पोंड प्रतिदिन हो गया इस प्रकार युद्ध समाप्त होने के बाद सभी देशों पर राष्ट्रीय ऋण का अत्यधिक भार आ पड़ा। फ्रांस पर 1470720 लाख फ्रेंक जर्मनी पर 1606000 लाख मार्क राष्ट्रीय  ऋण था ।इसके अतिरिक्त उतरी फ्रांस बेल्जियम उतरी इटली रूल्स पोलैंड सर्बिया  ऑस्ट्रियन आदि ऐसे राज्य थे जिन पर बड़े देशों का राजनीतिक प्रभुत्व था उन्हें आर्थिक दृष्टि से शत्रु देशों ने बर्बाद कर दिया इस आर्थिक विकास के कुछ परिणाम निम्नलिखित थे 

  • 1.उत्पादन क्षमता का ह्रास
  • 2. वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि
  • 3. राष्ट्रीय जनता पर विभिन्न करो का भार 
  • 4.बेरोजगारी  । first world war pratham vishv yuddh notes

(3)सामाजिक परिणाम

प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम स्वरुप अनेक सामाजिक परिणाम सामने आए जो निम्न है 

  1. जनहानि 
  2. महिलाओं के सामाजिक स्तर में सुधार 
  3. जाति कटता की भावना में कमी श्रमिकों में जागृति
  4.  शिक्षा की प्रगति और विकास
  5.  समाजवाद का विकास 
  6. वैज्ञानिक प्रगति  first world war pratham vishv yuddh notes

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रथम विश्वयुद्ध की घटना केवल यूरोप में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के इतिहास की दिशा को बदलने वाली घटना थी जिसमें विभिन्न देशों के राजनीतिक आर्थिक सामाजिक व वैज्ञानिक जीवन पर क्रांतिकारी प्रभाव डाला था। युद्ध में अपार जन धन की हानि हुई एक तरफ विजेता पक्ष को पेरिस की संधि में निश्चित की गई क्षतिपूर्ति संतोष नहीं हुआ तो दूसरी तरफ विजित देशों को संधि की शर्तों को स्वीकार करने को बाध्य होना पड़ा इस प्रकार विश्व में स्थाई शांति स्थापित ना हो सकी और विश्व को पुनः एक बार महायुद्ध के विध्वंस कारी दृश्य को देखना पड़ा।  first world war pratham vishv yuddh notes


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